Wednesday, May 30, 2018

धर्म है या ड्रेकुला


“ये चिट्ठी बजरंग बली के नाम पे लिखी गयी गयी है। जय श्री राम बोलो और ऐसी ही 16 चिट्ठियाँ बना कर लोगो में बाँटो। पढ़ के चिट्ठी फेकने या फाड़ने वाले को या ऐसी 16 चिट्ठियाँ बना कर न बांटने वाले को बजरंग बली के श्राप को भोगना पड़ेगा, उसका और उसके परिवार का अनिष्ट होगा।“

अरे डरिए नहीं, इस ब्लॉग को पढ़ के आपको कुछ नहीं होगा और ना ही आपको ऐसे 16 ब्लॉग बनाने हैं। ये तो मात्र एक नमूना था कि किस तरह हम हमेशा ही धर्म के नाम पे डरते और डराते आए हैं। पहले ऐसी चिट्ठियाँ हांथ से लिख कर या प्रिंटिंग प्रैस से छपवा कर लोगों में बाँट दी जाती थीं, अब ये काम सोशल मीडिया पर देवी-देवताओं की तसवीरों को पोस्ट कर के किया जाता है। “10 सेकेंड में देवी जी की फोटो को जो देख कर भी लाइक नहीं करेगा उसके साथ अगले 10 मिनट में कुछ अनिष्ट होगा।“

मुझे समझ नहीं आता ये धर्म है या कोई ड्रेकुला, जिससे डर भी लगता है कि ख़ून पी जाएगा और डराया भी जा सकता है कि बे तेरा ख़ून चुसवा देंगे। हालांकि सिर्फ भारत ही नहीं सारे संसार में धर्म के नाम पर डरने और डराने वाले मौजूद हैं। जब तक बात केवल डर तक सीमित थी तो बात और थी, पर इस धर्म ने जब से जान लेना शुरू कर दिया, तब से मुझे तो केवल एक सिरियल किलर की तरह मालूम पड़ता है।

मैंने कोई धर्म ग्रंथ नहीं पढ़ा। गीता, कुरान, बाइबल या गुरू ग्रंथ साहिब, कोई नहीं। हाँ पर सभी के कुछ ना कुछ अंश ज़रूर पढे हैं, संक्षेप में सार समझा है। पर किसी भी धर्म के ग्रंथ में ये कहीं नहीं समझ आया कि उसके नाम पर लोगों में डर पैदा करो, उसके नाम पर हिंसा करो, दूसरे धर्म से नफरत करो, धर्म के ठेकेदार बन जाओ और जाति-प्रजाति पर राज करो।

दुनिया में सबसे आसान काम क्या हो सकता है? धर्म के नाम पर किसी को भी आसानी से बेवकूफ बनाना। क्यूंकी बात जब हमारे धर्म की आती है तो हम अंधे हो जाते हैं। गाय हमारी माता है, हमको कुछ नहीं आता है’, ये वाक्य कितना सटीक बैठता है आज के परिवेश में। किसी की जान ही लेनी है तो गाय को बीच में क्यूँ लाते हो? उस बेचारी को क्यूँ बदनाम करते हो। खामख्वा ना जाने कितनी हत्याएँ मासूम गाय के नाम पर कर डालीं धर्म के ठेकेदारों ने।

हर धर्म में प्रेम परिभाषित है, प्रेम को सर्वोच्च महत्ता दी गयी है। फिर प्रेमियों की हत्या वो भी धर्म के नाम पर सिर्फ इसलिए की उनके धर्म विलग थे। कौन हैं ये लोग जो ठेकेदारी करते हैं धर्म बचाने की। इन्हें ये ठेकेदारी आखिर सौंपी किसने है। ये क्यूँ तय करते हैं कि कौन गाय पालेगा-कौन नहीं, कौन प्रेम करेगा-कौन नहीं। अपने धर्म की तुलना अन्य धर्मों से करना बंद कीजिये। वो भी धार्मिक अंधता के शिकार हैं और आप भी। उनके उठाए गलत कदमों का अनुसरण करना आपके धर्म की श्रेष्ठता नहीं बल्कि मूर्खता कहलाएगी।

संभल जाइए, अभी भी समय है, आपके धर्म से ऊपर आपकी मानवता है। धर्म के नाते किसी की हत्या करने से कहीं बेहतर है मानवता के नाते किसी के प्राण बचाना, बिना ये सोचे कि जिसके प्राण आप बचा रहे हैं वो किस धर्म का है। धार्मिक हिंसा से मात्र आपका पतन ही हो रहा है, आपके धर्म का उत्थान नहीं। कोई धर्म किसी से बड़ा या छोटा नहीं। सर्व धर्म समभाव का ये आसान सा पाठ हमें बचपन से स्कूल में पढ़ाया जाता रहा है जिसे हम नादानी में भी समझ लिया करते थे। फिर परिपक्वता आने के बाद भूल क्यूँ गए हैं।