नोट: यह लेख पूर्णतः मेरी खोज, ज्ञान और सोच का एक मेल जोल है। किसी भी ऐतिहासिक और भौगोलिक
घटना का सत्य/असत्य होने का मैं दावा नहीं करती हूँ। मैंने यह लेख कुछ किताबों, इंटेरेनेट, टेलिविजन और कुछ अनुभवी बुज़ुर्गों से मिली
हुई जानकारी के आधार पर लिखा है। इस लेख का हिन्दू धर्म में आस्था रखने वालों को आहत
करने को कोई अभिप्राय नहीं हैं।
भाग-1
करोड़ो वर्षों पूर्व संसार के नक्शे में
भारत था ही नहीं। धीरे-धीरे हुए भौगोलिक परिवर्तनों के चलते संसार के नक्शे में
परिवर्तन होता रहा है। भारत के नक्शे में से अगर हिमालय को अलग कर दिया जाए तो
उसके बाद बचा हुआ निचला हिस्सा था ‘इंडिया प्लेट’ जो कि 100 मिलयन वर्ष पहले प्राचीन महाद्वीप ‘गोंडवाना’ से अलग हो कर उत्तर की ओर बढ़ी। ये प्लेट
पहले हिन्द महासागर में तिरछी और काफी नीचे हुआ करता थी। धीरे-धीरे ये प्लेट
खिसकते हुए और अपना कोण बदलते हुए सीधी हुई और यूरेशियन (यूरोप और एशिया) प्लेट से
आकर टकराई। जिसके बाद हिमालय का निर्माण हुआ और आज का उत्तराखंड, नेपाल, जम्मू कश्मीर आदि बनने से भारत का नक्शा
पूरा हुआ।
आज जिसे हम भारत के नाम से जानते हैं ये
भारत होने से पहले द्रविड़ राज्य हुआ करता था। यहाँ द्रविड़ों का शासन था। द्रविड़
राज्य में मात्रसत्ता हुआ करती थी। यहाँ शासन रानी का होता था, और वो विवाह कर के एक राजा को इसलिए लाती थी क्यूंकी
वो उससे संतान प्राप्ति कर सके। राजा का इससे अधिक और कोई कार्य नहीं होता था। हाँ, यदि वो बलशाली होता तो उसे सेना का नेत्रत्व करने का
अवसर अवश्य मिलता था। रानी एक से अधिक विवाह भी कर सकती थी। उस विवाह का एक मात्र
उद्देश्य होता था एक समर्थ पुत्री की प्राप्ति जो आगे जा के शासन संभाल सके। रानी
तब तक संतान उत्पन्न करती थी जब तक वो एक समर्थ पुत्री को प्राप्त न कर ले। पुत्री
की समर्थता उस समय उस राज्य के भविष्यवक्ताओं के द्वारा की गयी भविष्यवाणियों से
तय की जाती थी।
ध्यान देने योग्य है कि
उस समय की भविष्यवक्ता भी स्त्रीयां ही होती थी। हर आवश्यक मोर्चे पर पर स्त्री का
वर्चस्व था। यहाँ तक कि राज्य की सेना भी स्त्री से परिपूर्ण हुआ करती थी। बलशाली
युवकों को सेना में भर्ती होने के लिए कड़े मापदण्डों पर खरा उतरना होता था।
स्त्रियॉं को उनके बचपन से ही योद्धा बनने की तैयारी में लगा दिया जाता था।
उस समय यहाँ कोई धर्म नहीं था, कोई जातिवाद, वर्ण व्यव्यस्था, रंगभेद, उंच-नीच इत्यादि कुछ नहीं था। द्रविड़
देवी के उपासक थे। देवी का क्या स्वरूप था इसके बारे में कुछ निश्चित नहीं कहा गया
आज तक। हाँ पर ‘आचार्य चतुरसेन शास्त्री’ के लेखन में भारत में मात्रसत्ता होने के प्रमाणों के
बारे में उन्होने स्पष्ट किया है। अब प्रश्न ये उठता है कि जब स्त्रियाँ इतनी
सशक्त थी तो अचानक क्या और कैसे परिवर्तन आए जो हमारे देश के नक्शे में भारत का
आकार और नाम बदलते हुए अपनी मात्रसत्ता को खो कर पित्रसत्ता को ग्रहण किया।
इतिहासकारों ने इस परिवर्तन का कारण बताया
है द्रविड़ों पर आर्यों का आक्रमण और भारत पे उनका वर्चस्व। इंडो-यूरोपियन रेस जिसे
आर्यन रेस या आर्य भी कहा जाता है, असल में सिंधु घाटी सभ्यता के विनाशक
माने जाते हैं। द्रविड़ अपने राज्य या देश को सुरक्षित मानते थे क्यूंकी उनके
अनुसार सप्त सिंधु (seven
territories of Sindh river)
क्रमशः ‘शुतुद्री,
परूष्णि, अशिक्नी,
वितस्ता, विपाशा,
अरिजिक्य या सुशोमा, और कुभा‘,
उनके क्षेत्र की रक्षा कर रही थी और उन्हें पार कर के द्रविड़ राज्य में घुसना सरल
कार्य नहीं था। सप्त सिंधु ऋग वेद का एक अभिन्न अंग हैं। आर्य भी अपना वर्चस्व
फैलाने की लिए इंडोनेशिया से भारत की ओर बढ़े और अफगानिस्तान, हिंदुकुश पर्वत श्रंखला पार करते हुए तक्षिला (आज का
पाकिस्तान) तक पहुंचे। जहां उस समय सिंधु घाटी सभ्यता परिवेश था। आर्यों ने ना
केवल सिंधु घाटी सभ्यता का विनाश किया बल्कि सिंधु नदी की टेरीटरीज़ को भी नष्ट
किया और अंततः द्रविड़ राज्य के तट तक आ पहुंचे।
द्रविड़ों की सेना स्त्रियॉं से भरपूर थी
और उनकी शासक भी स्त्री थी, ये आर्यों के लिए अनोखी और असहनीय बात
थी। पर स्त्री शक्ति तब भी आर्यों पर भारी पड़ रही थी। आर्यों के महा गुरु तंत्र
विद्या में भी पारंगत उआ करते थे। जब आर्यों के बड़े-बड़े सूरमा भी द्रविड़ स्त्रियों
के आगे पानी भर गए तो महा गुरु ने अपना छल खेला। मंत्रों के साथ तंत्र का प्रयोग
करते हुए उन्होने द्रविड़ राज्य को पराजित किया और उत्तर छोड़ कर उन्हें नर्मदा पार
दक्षिण में अपना राज्य स्थापित करने का प्रस्ताव रखा। उस समय से द्रविड़ नर्मदा नदी
के पार दक्षिण में स्थापित हो गए। यही वो क्षण था जब मात्रसत्ता का अंत हुआ और
पित्रसत्ता का उदय।
शेष अगले अंक में......
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