भाग-2
.............भारत पर अपना वर्चस्व स्थापित करने के बाद
आर्यों ने यहाँ ‘सनातन धर्म’
की स्थापना की। सनातन (eternal) का अर्थ है सदा-सर्वदा विद्यमान रहने वाला। जिसे आज हम हिन्दू
धर्म या हिंदूइज़्म के नाम से जानते हैं और पालन करते हैं। हिन्दू शब्द सिंधु से
उत्पन्न अपभ्रंश है। सनातन धर्म कब हिन्दू धर्म में परिवर्तित हो गया, इस बात का कहीं कोई ठोस प्रमाण नहीं है। हिन्दू असल
में एक फारसी शब्द है जिसका संबंध धर्म से नहीं है। हिन्दू शब्द का प्रयोग एक
विशिष्ट संस्कृति का अनुकरण करने वाले एक ही प्रजाति के लोगों के लिए किया गया। आर्य
जैसे अपने साथ धर्म ले कर आए वैसे ही जातिवाद और वर्ण व्यवस्था भी। उस समय उनकी
वर्ण व्यवस्था उनके पुरुषों के जनेऊ से प्रदर्शित होती थी। उच्च कुल सोने का जनेऊ, मध्यम कुल चाँदी का जनेऊ और नीच कुल तांबे का जनेऊ धारण
करते थे। स्त्रियों के प्रति आर्यों की विचारधारा उनके घर और गृहस्थी तक सीमित
रहने वाली थी। स्त्रियों को शिक्षा, शस्त्र विद्या, नीति, आदि के लायक नहीं माना जाता था। उन्हें
मात्र विवाह कर पुत्र उत्पत्ति और पति सेवा का साधन माना जाता था।
हमने जो इतिहास पढ़ा है उससे हमें ये लगता
है कि मुग़लों के आने के बाद उनके अत्याचारों से बचने के लिए पर्दा प्रथा और बाल
विवाह का प्रचलन चला। जबकि ‘राहुल सांकृत्यायन’ अपनी रचना ‘वोल्गा से गंगा’ में ये स्पष्ट कर चुके हैं कि आर्यों के समय से ही
बाल विवाह का प्रचलन था। उन्होने लिखा है, “जब स्त्री रजस्वला (puberty) हो जाए तो उसका विवाह कर देना चाहिए।“ स्त्री के
राजस्वला होने की सामान्य उम्र 8 वर्ष से प्रारम्भ हो जाती है। इस अनुसार तो हम इस
व्याख्या को बाल विवाह ही कह सकते हैं।
मैं ना तो धर्म विरोधी हूँ, ना ही मुझे हिन्दू धर्म से कोई आपत्ति है। पर जिस
धर्म पर हम इतना गर्व महसूस करते हैं, देश को दी गयी सारी कुरीतियाँ उसी धर्म
से आई हैं। आज हिन्दुत्व के नाम पर देश भर में कितने ही भ्रम फैले हुए हैं। हमें
लगता है कि केवल भारत में ही हिन्दू धर्म की मान्यता है। जबकि सच्चाई ये है कि
संसार के कई देशों में हिन्दू धर्म को पालन करने वाली जनसंख्या मौजूद है। भारत, नेपाल, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, पाकिस्तान,
श्री लंका, मलेशिया,
संयुक्त राज्य, मयानमार,
यूनाइटिड किंग्डम, केनेडा,
दक्षिण अफ्रीका, मौरिशस और करिबियन (पश्चिमी इंडीस)। ये
वो देश है जहां 500,000
से अधिक हिन्दू नागरिक
शामिल हैं (घटती हुई संख्या में)। माना कि हिन्दू धर्म सबसे पुराना है, और जब इस धर्म की स्थापना की गयी, शायद इंडोनेशिया में सबसे पहले सनातन धर्म के रूप में, तो ज़रूर ही ज्ञानी महापुरुषों को अपने देश की जनसंख्या
को अराजकता से बचाने का यही एक मात्र समर्थ साधन महसूस हुआ होगा। पर गौर करें तो
और इन महापुरुषों को आर्य ही कह कर संबोधित करें तो ये समझ आता है कि क्षेत्र
विस्तार के लिए साम-दाम-दण्ड और भेद भी आर्यों की ही उपज रही है। इस सीमा विस्तार
और धर्म का विस्तार ये परिणाम लाया कि जो आर्यों का मूल देश था यानी इंडोनेशिया जो
कभी हिन्दू देश हुआ करता था वो अब एक इस्लामिक देश है।
सीमा विस्तार का सीधा सा अर्थ होता है
युद्ध, जिसका परिणाम निर्दोषों की हत्या, भौगोलिक-सामाजिक और प्राक्रतिक साधनों का विनाश। एक
पक्ष की विजय और दूसरे पक्ष की पराजय। उसके बाद बर्बाद हुए देश या राज्य का पुनर्निर्माण।
आर्यों द्वारा प्रारम्भ किए हुए इस चलन को फिर
भारत अनेकानेक बार झेलता गया। हाँ, आर्यों ने यहाँ अपना वर्चस्व स्थापित करने
के बाद देश को प्रगति की ओर अग्रसर किया। शिक्षा के नए स्त्रोत खोले, चिकित्सा के क्षेत्र में प्रगति की। पर ये सब मात्र
पुरुषों तक सीमित रहा। स्त्रियों का दमन हुआ और केवल दमन ही हुआ। बाल-विवाह, सती प्रथा, बेमेल विवाह जैसी कुरीतियों को बढ़ावा
मिलता गया। जैसे-जैसे भारत समर्थ होता गया, वैसे-वैसे ही विदेशी आक्रमण भी होते गए। पहले
फारसी, फिर यूनानी, फिर अफगानी (लुटेरे),
फिर मुग़ल और फिर अंग्रेज़ आते गए और वही दोहराते गए जिसका चलन आर्यों ने आरंभ किया था।
इन सब के बीच पुर्तगालियों और चीनी व्यापारियों का भी आवा गमन होता रहा जो भारत से
गुड़ और मसाले ले जाते रहे। चीन ने गुड़ से शक्कर बनाने का नुस्खा यहीं से सीखा और अपने
देश जा कर यहाँ से बेहतर उत्पादन किया। आज हाल ये है कि चीन शक्कर का एक बहुत बड़ा उत्पादक
देश है।
जैसे आर्यों का हमारे इतिहास में एक अभिन्न
अस्तित्व है वैसे ही दूसरे आक्रमणकारियों और फिर शासकों का भी। हालांकि अगर केवल आर्यों
और द्रविड़ों के बीच के फर्क को समझना हो तो उत्तर और दक्षिण में जो फर्क है उसी से
समझ आ जाता है। उत्तर में आज भी स्त्रियॉं की स्थिति दक्षिण से निम्न ही है। दक्षिण
में न केवल स्त्रियाँ परंतु पूरी जनसंख्या का रुझान शिक्षा और तकनीक की तरफ देखा जा
सकता है। आज भी दक्षिण की स्त्रियाँ ज़्यादा शिक्षित और समर्थ हैं। जबकि उत्तर में इस
शिक्षा और समर्थता का स्तर काफी नीचे है।
मैं हिन्दू हूँ, और मैं इस बात पर गर्व करती हूँ। किसी और भी धर्म के अंतर्गत
पैदा हुई होती तो भी करती। क्यूंकी मैं अपने धर्म से केवल वो और वहाँ तक
सीखने और समझने का प्रयास
करती हूँ जहां तक मुझे किसी को चोट पहुंचाना, अपमान करना, नहीं सिखाया जाता। मेरे लिए मेरा ईश्वर मेरे मन में एक
शक्ति के समान स्थित है जो मुझे विवेक देता है। उसे मुझे किसी रूप, आकार, रंग और मूर्ति में ढालने की ज़रूरत नहीं पड़ती।
सबसे पुराना वैदिक धर्म है,उसके बाद सनातन धर्म कहलाया ( जिसमें ध्यान साधने के लिए ईश्वर को मूर्त रूप दिया), अन्य सभी प्रचलित धर्म तो नए हैं I लेकिन किसी भी धर्म में जीव को चोट पहुँचाना व अपमानित करना नहीं सिखाया जाता I केवल मठाधीश अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं और उनके अनुयायी बेवकूफ बनते हैं I
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